मैंने सदैव प्रयास किया
तुम्हें प्रेम का सागर देने का,
मैंने सदैव प्रयास किया
तुम्हरे चेहरे की हँसी को कायम रखने का
लेकिन मैं सदैव असफल रही क्योंकि
तुम समझ ही नहीं पाए मेरे प्रेम को
तुम भाप ही ना सके मेरी भावनाओं में लिप्त परवाह को
पता था कि हमारा साथ सम्भव नहीं है
फिर भी ढूंढी मैंने तुम्हारे साथ
ठहर जाने की संभावनाएं
लेकिन मेरे हिस्से आईं केवल
असीमित प्रतिक्षाएं,
अनगिनत विवशताएं अनेक स्मृतियों का वेग
और विरह की पीड़ाओं का सागर
अगर कुछ नहीं आया तो वो था
तुम्हारा 'साथ' और 'तुम' ........